भागवत जी एक ओर हिन्दू राष्ट्र को समावेशी और समतावादी बता रहे हैं तो दूसरी ओर एक ही राष्ट्र में अलग विचारधारा का होना कोई अपराध नहीं है, इस बात पर भी ज़ोर दे रहे तो संघ प्रमुख भागवत जी, सुनिश्चत करें कि हिन्दू उनकी दृष्टि में कौन है? यदि वह शुद्र, दलित पिछड़े को हिन्दू कह रहे हैं तो ब्राह्मणों का यहां रहना कोई औचित्य नहीं है।
हिन्दू राष्ट्र पर ब्राह्मणों का क़ब्ज़ा हिंदुओं के लिये दुर्भग्यपूर्ण है। तब यह हिन्दू राष्ट्र कहना उचित नहीं है, हिन्दू के नाम पर राष्ट्र पर क़ब्ज़ा ! ब्राह्मणों, सवर्णों का?? यह कैसा खेल है???
हिंदू राष्ट्र के बारे में बात करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि अक्सर लोग ‘राष्ट्र’ शब्द का गलत मतलब निकालते हैं। वे इसे पश्चिमी देशों की तरह ‘नेशन’ समझ लेते हैं, जिसका मतलब सिर्फ जमीन और सरकार होता है। उन्होंने साफ किया कि हिंदू राष्ट्र का मतलब सिर्फ जमीन या ताकत नहीं है। इसका मतलब है, सभी को बिना भेदभाव के न्याय मिलना, चाहे उनका धर्म, भाषा या विचारधारा कुछ भी हो। भागवत ने कहा कि न्याय सबके लिए एक समान है। हिन्दू राष्ट्र का मतलब किसी को बाहर करना नहीं है, इसका मतलब किसी का विरोध करना भी नहीं है।
भागवत जी अनुसार यदि राष्ट्र का मतलब -सरकार नहीं है ज़मीन नहीं है, ताक़त नहीं है, बल्कि सभी मानव को बिना भेद भाव न्यायपूर्ण सौहार्दपूर्ण आपस मे मिल कर रहना है तो यह मानवता ही तो कहलायेगा ??? यह हिन्दू राष्ट्र कैसे कहलायेगा?? इसे आप हिन्दू राष्ट्र क्यों कहेंगे??? °यदि हिन्दू राष्ट्र ही कहना है तो फिर आपको हिन्दू शब्द को परिभाषित करना होगा, और यदि इस हिन्दुतान को हिन्दू राष्ट्र कहते हैं तो हिन्दू कौन हैं, यह बताना पड़ेगा, यदि दलित पिछड़े आदिवासी, को आप शुद्र कहते हैं, और इन्हें ही हिन्दू कह रहे हैं तो यह राष्ट्र तो इन्हीं का होगा??? फिर यहां छत्रिय ब्राह्मणों वैश्य – सवर्णों का वर्चस्व क्यूँ?, और यदि छत्रिय ब्राह्मणों वैश्य – सवर्णों को हिन्दू कह रहे हैं और शूद्रों को भी हिन्दू कह रहे हैं तो शूद्रों बराबरी दर्जा क्यूँ नहीं??? शूद्रों को पुजारी, कथावाचक और महंत तथा पद क्यों नहीं, ब्राह्मण का बच्चा अज्ञानी है फिरभी मंदिरों और मठों पर उनका क़ब्ज़ा और शूद्र चाहे कितना भी ज्ञानी हो जाये उसे ब्राह्मणों के कदमों में रहना है उन्हें पूजा पद्धति, तथा उच्च पद और सत्ता से दूर रखने की पुरजोर कोशिश रहती है। ऐसा क्यूँ??
और यह भी कह रहे हैं कि हिन्दू राष्ट्र का मतलब किसी को बाहर करना नही , तो यह हास्यस्पद है कि आपके मन मे यह धारणा बन रही है कि कोई किसी को बाहर कर रहा है? आप खुल कर बताना नहीं चाहते कि स्वर्ण मुसलमानों को किसी भी बात कहते हैं पाकिस्तान चले जाओ, … यह कैसे सम्भव है की किसी के कहने पर कोई अपना घर बार छोड़ देगा? प्रकृतिक आपदाओं के शिकार विस्थापन तो इधर से उधर हो सकते है, लेकिन किसी के कहने पर कोई अपना देश छोड़ देगा यह सम्भव नहीं वह अपनी जान दे देगा, लेकिन अपना देश नहीं छोड़ेगा। 1947 का बंटवारा हिंदुस्तान का दुर्भगय और एक बहकावे की विडंबना थी, जो गलतियां हुई अब ऐसी गलती कभी नही दुराई जाएगी।।
भागवत ने यह भी कहा कि अलग विचारधारा होना कोई अपराध नहीं है। आरएसएस पूरे समाज को एकजुट करने में विश्वास रखता है। मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बताते हुए कहा कि इसकी आत्मा उसकी प्रार्थना की आखिरी पंक्ति में है- भारत माता की जय। उन्होंने कहा कि यह हमारा देश है, और हमें इसका सम्मान करना चाहिए और इसके लिए काम करना चाहिए। आरएसएस की स्थापना भारत के लिए हुई थी। यह देश के लिए काम करता है, और इसका उद्देश्य भारत को विश्वगुरु बनाना है। अब समय आ गया है कि भारत दुनिया में अपना योगदान दे।
आरएसएस प्रमुख के यह वाक्य प्रसंगिक है, मुख पर राम राम बगल में छुरी – यदि इनकी दृष्टि में हिन्दू राष्ट्र समावेशी और समतावादी है, तो यह शुद्र शब्द की उतपत्ति क्यूँ की गई, और फिर उनका अधिकार किसी मंदिरों पर क्यूँ नहीं? शूद्रों को मंदिरों में जाने से मंदिरों को कहीं गंगा जल क्यूँ धोया जाता है, और फिर किसी शुद्र को आज तक कोई पुजारी या कथावाचक बनने अधिकार क्यूँ नहीं है?
राष्ट्र की अवधारणा सत्ता और सरकार से परिभाषित नहीं होती। भारतीय परंपरा में राष्ट्र का अर्थ संस्कृति, आत्मचिंतन और सामाजिक चेतना से जुड़ा है। इतिहास की ओर देखने पर यह स्पष्ट होता है कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हिन्दू मुसलमान मिल कर अंग्रेजों से लड़े इसलिये वह स्वतंत्रता संग्राम सफल रहा, और इस संग्राम ने भारतीय समाज में एक नई चेतना और आत्म-जागरूकता को जन्म दिया। तब कांग्रेस मज़बूती के साथ उभरी, जिसने राजनीतिक समझ और सामाजिक सुधार का मार्ग प्रशस्त किया। परन्तु संघ की ही हीनभावना और द्वेषी और दुराग्रही मानसिकता के कारण स्वतंत्रता के बाद भी समाज में उपजी असमानताओं और कुरीतियों को दूर करने की चुनौती बनी रही, जो आज भी देखने को मिल रही है।
मोहन भागवत जी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हिंदुस्तान भारत इंडिया को हिन्दू राष्ट्र क्यूँ बनाना चाहते है? इससे किसको लाभ पहुंचेगा? फिर भारत के करंसी का नाम क्या होगा, इसलिये की रुपया नाम तो बादशाह टीपू सुल्तान ने दिया था, हिन्दुराष्ट्र की करंसी का नाम क्या होगा और उसकी वैल्यू क्या होगी??
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