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नही रहे अमीरी रेखा खींचने वाले – लेखक रोशन लाल अग्रवाल,

अपने जीवन की हर खुशियों और सुख चैन त्याग कर अपने आपको राष्ट्रहित में समर्पित कर जन-जागरण के लिये देश विदेश कि यात्रा निकल कर लोगों का अलख जगाते रहे, देश की स्थिति को मजबूत बनाने के लिये उन्होंने दो पुस्तकें लिखी।

नही रहे अमीरी रेखा खींचने वाले – लेखक रोशन लाल अग्रवाल,

बड़े गौर से पढ़ रहा था ज़माना – तुम्ही सो गए दास्तान लिखते लिखते।।तुम्हारे जीतेजी खौफ में जीते रहे वे लोग। जो पूंजीवाद के सत्ता पर बैठे ऐश करते हैं। उन्हीं में से कोई तुमको कभी पागल समझता था, उन्ही में से कभी कोई तुम्हे दीवाना कहता था। मगर ज़िद था तुम्हारा की , मैं दुनियां को बदल दूंगा।। इसी ज़िद में आपने “गरीबी नहीं अब अमीरी रेखा” लिख डाला। मगर अफसोस रहेगा कि उस प्रावधान को किसी ने अब तक स्वीकार भी नहीं किया। यह कैसा देश बन गया जहां सिर्फ द्वेष और दुराग्रह में जीते हैं लोग।

अपने जीवन की हर खुशियों और सुख चैन त्याग कर अपने आपको राष्ट्रहित में समर्पित कर जन-जागरण के लिये देश विदेश कि यात्रा निकल कर लोगों का अलख जगाते रहे, देश की स्थिति को मजबूत बनाने के लिये उन्होंने दो पुस्तकें लिखी।

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Writer Roshan lal Agrwal “गरीबी रेखा नहीं अमीरी रेखा”  और “व्यावस्था परिवर्तन की राह” यह दो पुस्तकें जो भारत की दिशा और दशा दोनो ही बदलने के लिए उपयोगी हैं, परन्तु अफसोस है कि लोकतंत्र के नाम पर राजतंत्र की सत्ता ने आम जनता को पूंजीवाद का मानसिक गुलाम बना दिया, जो सत्ता का मज़ा भोग रहे हैं उनके लिये यह पुस्तकें घोर शत्रु के समान प्रतीत है .
इस पुस्तक को पढ़ने के बाद पूंजीवादियों और गुलाम मनुवादियों को ऐसा प्रतीत होता है जैसे उनके पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी, परन्तु एक आम शिक्षित मेहनत मजदूरी करने वाले नौकर पेशा फैक्ट्रियों और कम्पनियों में कार्यरत मैनेजर, से नीचे तबक़ा के लोगो को और छोटी पूंजी से व्यापार करने वाले छोटे मंझोले व्यापारिओं तथा ड्राइवरी करने वाले लोग जो भी इस पुस्तक को पढ़ता है उसको जैसे मानो ज़िन्दगी के सारे सपने पूरे होने वाले हों,, उनकी बंझें खिल उठती है।
यह पुस्तक आम जनता के लिये गुणकारी और हितकारी है परन्तु पूँजीपत्तियों और सत्तारूढ़ नेताओ और राजनेताओं के लिये एक विषैला तन्त्र है जिसका नाम लेना भी पाप समझते हैं।
बहरहाल – आज रोशन लाल अग्रवाल जी हमारे बीच नहीं रहे, पिछले कई महीनों से वह अस्वस्थ्य चल रहे थे, अपने अंतिम समय मे उनकी दोनों आंखों ने भी उनका साथ छोड़ दिया था और फिर उनकी याददाश्त भी जा चुकी थी। वह अपने सम्पूर्ण ज़िम्मेवारियों से लगभग 20 वर्ष पहले ही निपट चुके थे ।
उनका रायपुर छत्तीसगढ़ सरगुजा ट्रांसपोर्ट का कारोबार है जो वर्षों पहले अपने भाई अधिवक्ता के तीनो बेटे यानी अपने भतीजों के हवाले कर दिया था ,एक बेटा जो वेटनरी डाक्टर है , दो पुत्र हैं जो अपने दादा की सेवा में लगे रहे थे। रोशन लाल अग्रवाल के सुखी सम्पन्न छोटा परिवार आइये देखिये –
अधिवक्ता सुभाष चन्द्र अग्रवाल  भाई, डॉ. अजय अग्रवाल पुत्र, पौत्र सीए शरद अग्रवाल, और डॉ.  तरुण अग्रवाल, भतीजा – पुरुषोत्तम अग्रवाल, विनोद अग्रवाल, और विशाल अग्रवाल, जो सरगुजा ट्रांसपोर्ट देख रहे हैं।
दिल्ली मे 10 साल 
Writer Roshan lal Agrwal “गरिबी रेखा नहीं अब अमीर रेखा” बननी चाहिए यह एक देश को विकसित करने वाली सोंच ले कर दिल्ली तो चले आये, दिल्ली वालों को क्या एतराज़, साथ देने वाले साथ हो गए, जिसमे मित्तल जी बजरंगभाई, डॉ. ऐसे अनेको हमदर्द मित्र मीलते गए और कारवां बनता गया, अग्रवाल जी एक युवा गोपाल सिंह परिहार को अपने साथ रखते थे। वह बड़ा वफादार साथी था, लेकिन उनकी महत्वकांक्षा थी कि वह अपनी बात बड़े राजनेता जो सत्तारूढ़ हैं उनको सुनायें, वह वहां तक किसी न किसी के माध्यम से मोदी जी तक पहुंचने की कोशिश करते रहे ताकि वह अपनी लिखित पुस्तक को मोदी जी हाथों में दे, और और मोदी जी उसमें लिखे प्रावधानों को पढ़े और समाज के अंतिम व्यक्ति को लाभ पहुंचायें, परन्तु दुर्भगय रहा कि, जहां उन्होंने चाहा पुस्तक तो वहां तक पहुंच गई लेकिन उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, जबकि मैं एक पत्रकार होने के नाते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास जा कर स्वयं वह पुस्तक उनके हांथों में दी और बिनती क्या की सर इस पुस्तक को एक बार इस पर सरसरी निगाह डाल दें तो देश का कल्याण हो जाएगा। उन्होंने भी पुस्तक लिया और पता नहीं कबाड़ में डाल दिया होगा।
कोशी छोड़ी नही, मैं किसी तरह मनमोहन सिंह के यहां समय लिया और वहां तक वह पुस्तक पहुंचाई, मनमोहन सिंह जी ने समय तो दिया जब वहां पहुंचे तो उनके ओएसडी ने बताया कि साहब एक विशेष बैठक में व्यस्त हो गये हैं, पुस्तक तो ले ली गई लेकिन उस पर कोई प्रतिक्रिया नही दी गई।
बहरहाल यह पुस्तक सोनिया जी के यहां भी ले कर गये मगर सोनिया जी के पास नहीं पहुंच सके। राहुल और प्रियंगा गांधी तक भी पहुंचाने की कोशिश की लेकिन वह सत्ता में न होने के बावजूद हमे वहां तक पहुंचने नहीं दिया गया।
दिल्ली के कांस्टीट्यूसनल क्लब में गरीबी रेखा नहीं अमीरी रेखा” पर एक भव्य सेमिनार का आयोजन किया , वहां भी लगभग 1000 पुस्तके फ्री में वितरित की गई, पुस्त की काफी प्रशंसा तो हुई लेकिन न तो किसी अन्य आम लोगों की पोइ प्रतिक्रिया ही आई। यह बड़ा ही दुर्भगय था कि मेहनत और पैसा दोनो ही व्यर्थ बर्बाद हो रहा था।
जबकि की क्रोना के कार्यकाल में भी उन्होंने अपना कार्य सुचारू रूप से चालू रखा क्रोना काल के दौरान उनका वफादार साथी गोपाल सिंह परिहार उन्हें छोड़ कर अपने गाँव चला गया और फिर वह उनके पास नहीं आया क्रोनाकाल गुज़र जाने के बाद जब राहुल गांधी के यहां जाने का प्लान बना रहे तो उनकी तबियत खराब हो गई और उस बीच अंततः उन्हें दिल्ली छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। फिर वह वापस दिल्ली नहीं आये और धीरे धीरे अपनी अंतिम यात्रा की ओर बढ़ते रहे और अंततः आज अपने अंतिम यात्र को हमेशा के लिए निकल गये, ॐ शांति ॐ, , ॐ शांति ॐ, ॐ शांति ॐ मममममममम
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