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आकाशवाणी के रंगभवन में बिखरे संगीत के स्वर

प्रख्यात बांसुरी वादक पंडित राकेश चौरसिया, तबला के सुप्रसिद्ध कलाकार पंडित रामकुमार मिश्र तथा मराठी लोक संगीत के लोकप्रिय कलाकार नंदेश उमप एवं उनके दल ने अपनी प्रस्तुतियों से पूरे रंगभवन को सुर, लय और ताल के अनूठे संगम में डुबो दिया।

 

AI-Desk News

पिछले दिनों नयी दिल्ली के संसद मार्ग स्थित आकाशवाणी भवन में हर वर्ष की भाँतीं इस वर्ष भी आकाशवाणी के प्रांगण के रंगभवन सभागार में आकाशवाणी का अति-प्रतिष्ठित और लोकप्रिय कार्यक्रम “संगीत सम्मेलन 2025” का भव्यता और उत्साह के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। शीत ऋतु की देहरी पर यह सांगीतिक संध्या भारतीय शास्त्रीय और लोकपरंपराओं के अनोखे संगम का साक्षी बनी।

कार्यक्रम का आरंभ प्रसार भारती अध्यक्ष श्री नवनीत कुमार सहगल,मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री गौरव द्विवेदी , पंडित राकेश चौरसिया, पंडित रामकुमार मिश्र और नंदेश उमप द्वारा दीप प्रज्जवलन से हुआ।तत्पश्चात प्रसार भारती अध्यक्ष श्री नवनीत कुमार सहगल ने आकाशवाणी संगीत सम्मेलन का औपचारिक रूप से शुभारंभ किया।

कार्यक्रम में प्रख्यात बांसुरी वादक पंडित राकेश चौरसिया, तबला के सुप्रसिद्ध कलाकार पंडित रामकुमार मिश्र तथा मराठी लोक संगीत के लोकप्रिय कलाकार नंदेश उमप एवं उनके दल ने अपनी प्रस्तुतियों से पूरे रंगभवन को सुर, लय और ताल के अनूठे संगम में डुबो दिया।

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पंडित राकेश चौरसिया ने बंदिश, राग भीमपलासी, आलाप जोड़ झप ताल और द्रुत तीन ताल में और पहाड़ी धुन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। बांसुरी की मधुर धुनों, तबले की लयबद्ध गूंज और लोक संगीत की ऊर्जावान प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को भारतीय संगीत की आत्मा से जोड़ दिया। खचाखच भरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट ने कलाकारों के उत्साह को नया आवेग दिया।

मराठी लोक संगीत की प्रस्तुति में पारंपरिक नृत्य ने इस कार्यक्रम को जीवंत बना दिया। रंगीन परिधानों, जोशीले नृत्य-भावों और ढोलकी की थापों ने इस पूरे कार्यक्रम को सदा स्मृतियों में कैद रखने की शक्ति प्रदान की। श्रोताओं ने संगीत और नृत्य के इस अद्भुत मेल को खड़े होकर श्रृद्धा प्रदान की।

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यह संध्या न केवल एक संगीत का एक आयोजन था, बल्कि भारतीय संस्कृति की उस आत्मीयता का उत्सव भी था, जो देश में भावनात्मक एकता और लगाव को नया आयाम देता है।

अर्से से चली आ रही आकाशवाणी संगीत सम्मेलन की इस महत परम्परा ने एक बार फिर सिद्ध किया कि जब सुर और लय साथ आते हैं, तो मन में आशा और उम्मीद के नये स्वर जागते हैं , भाषाएं और सीमाएं सिहरन और धड़कन से समझी और परखी जाती हैं।

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