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चुनाव विशेष – मार के डर से कांग्रेसी नेता घोषणा पत्र की घोषणा से हुए गायब

तेजस्वी का प्रण’ बना घोषणा पत्र, महागठबंधन ने अल्पसंख्यकों को दिखाया ठेंगा

चुनाव विशेष

मार के डर से कांग्रेसी नेता घोषणा पत्र की घोषणा से हुए गायब

तेजस्वी का प्रण’ बना घोषणा पत्र, महागठबंधन ने अल्पसंख्यकों को दिखाया ठेंगा

रितेश सिन्हा।

विधानसभा चुनावों के लिए महागठबंधन के संयुक्त चुनाव घोषणा पत्र में कांग्रेस और अन्य दलों की मौजूदगी में राजद ने ’तेजस्वी प्रण’ की घोषणा की।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सहित दिल्ली से पहुंचे हुए वरिष्ठ नेताओं की अनुपस्थिति ने पार्टी की स्थिति स्पष्ट दी।

प्रेस वार्ता से अशोक गहलोत भी गायब थे। गहलोत, भूपेश बघेल ओबीसी का बिल्ला लटकाए पटना में ही छिपे हैं। अधीर रंजन समेत इन दोनों नेताओं की सिट्टी-पिट्टी गुम है।

’टिकट चोर बिहार छोड़’ के नारे के साथ बिहार के ओबीसी, अतिपिछड़ा, मुस्लिम और दलित बड़ी बेसब्री से और गुस्से में इनसे टकराने के मूड में हैं।

’सीट चोर, कांग्रेस छोड’ का नारा झेल रहे प्रभारी कृष्णा अल्लावरू, स्क्रीनिंग के चेयरमैन अजय माकन, संगठन प्रभारी केसी वेणुगोपाल बिहार तो पहुंचे, लेकिन माहौल गर्म देख रातोंरात वापस लौट गए।

कार्यकर्ताओं की आवाज बने प्रवक्ता आनंद माधव, किसान कांग्रेस के राजकुमार शर्मा, पूर्व विधायक छत्रपति यादव की तिकड़ी प्रदेश के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ ये नेता सवाल-जवाब के साथ दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है।

इनकी बैठक पंचायत परिषद में 30 अक्तूबर को होने जा रही है जिसमें प्रदेश के नरम और गरम दल के नेता भाग लेंगे। अग्रिम संगठनों के नेता भी टिकट न मिलने से खासे नाराज हैं।

इधर-उधर के लोगों ने टिकट झटक लिए, वहीं अल्पसंख्यकों के नाम पर मिली टिकट में एकमात्र प्रदेश महिला अध्यक्ष डाक्टर सरवत फातिमा के साथ हुई नाइंसाफी की चर्चा दिल्ली तक है।

इसे कांग्रेस की यह बड़ी चूक माना जा रहा है। बिहार के बड़े नेताओं में मीरा कुमार, निखिल कुमार, प्रेम चंद मिश्रा, श्याम सुंदर सिंह धीरज, डाक्टर शकील अहमद ने चुप्पी साध रखी है। तारिक अनवर दोतरफा खेल रहे हैं।

सोशल मीडिया एक्स पर बिहार के सर्वेसर्वा बने अविनाश पांडे भी गायब हैं। अलबत्ता राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की फौज में शामिल बेचैन पवन खेड़ा जरूर थे।

चैनलों पर बतकही और बड़बोले खेड़ा की बोलती बंद थी। संकल्प पत्र जारी करने के दौरान तेजस्वी के साथ महागठबंधन के डिप्टी सीएम का चेहरा मुकेश सहनी, मंगनीलाल मंडल, दीपांकर भट्टाचार्य, बेटे को टिकट न मिलने से मायूस मदन मोहन झा, आईपी गुप्ता और रामनरेश पांडे भी मौर्या होटल में थे। घोषणा पत्र के जरिए अल्पसंख्यकों को महागठबंधन ने फिर एक बार ठगा है।

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बिहार में कांग्रेस ने राजद के साथ मिलकर एक बार अल्पसंख्यकों को धोखा दिया है। तेजस्वी जिन वोटों के भरोसे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं उन्हीं को ठेंगा दिखा दिया है। राजद अपने एमवाई समीकरण से बिहार में सत्ता और इसके करीब पहुंचता रहा है, जिसे नीतीश और भाजपा ने पिछड़े और अतिपिछड़े की राजनीति में उलझा दिया है।

हालांकि राजद ने कुख्यात शहाबुद्दीन के बेटे को टिकट देकर मुस्लिम मतदाताओं की भावनाओं से खेलते हुए उनको अपने जेब में समेटने की कोशिश की है।

राजद-कांग्रेस की मुकेश सहनी को तरजीह देते हुए अल्पसंख्यकों को अपमानित करने की कोशिश इस बार महागठबंधन को खासी महंगी पड़ेगी।

बिहार में 30 वर्षों से भाजपा का विकल्प नहीं था। राजद और कांग्रेस गठबंधन अल्पसंख्यकों को भाजपा का डर दिखाकर वोट ले रहा था।

इस बार प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी एक विकल्प बन कर उभरी है जिसको सेकुलर वोटों की गट्ठा मिलने जा रहा है। सीमांचल और प्रदेश का मुस्लिम तबका अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए जनसुराज और असीदुद्दीन ओवैसी के साथ जाने को तैयार दिखता है।

ओवैसी की काट में राजद और कांग्रेस के बड़बोले प्रवक्ता उनकी आलोचना में जुटे हैं। तीन सांसदों में तारिक अनवर, डॉ जावेद और मनोज कुमार और कांग्रेस के लिए ताल ठोक रहे पप्पू यादव को मिली जीत अल्पसंख्यक वोटों का कांग्रेस के प्रति धु्रवीकरण था।

पिछली लोकसभा में एकमात्र सांसद डॉ जावेद भी अल्पसंख्यक चेहरा थे जिसने कांग्रेस का सम्मान बचाया था। मगर प्रदेश की अल्पसंख्यकों की तरफ से उपमुख्यमंत्री की मांग से बचते हुए अपने नेताओं को संवाददाता सम्मेलन में शामिल नहीं होने दिया।

मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में पद और टिकट बेचने का खुला खेल फर्रूखाबादी चल रहा है। राहुल गांधी भले ही कितने दौरे और यात्रा कर लें, खरगे की टीम उन्हें जीरो बनाए रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती।

बड़ी बेशर्मी के साथ खरगे ने नाकारा, हारे और पिटे हुए लोगों का जमघट वर्किंग कमिटी से लेकर प्रदेश और प्रकोष्ठ में लगा रखा है। ये बड़े कारोबार के साथ बड़े पदों को कब्जाए हुए हैं। यहीं टीम खरगे के नकारा तीन साल के कार्यकाल को सफल बताने में जुटी है।

राहुल और प्रियंका के आसपास ऐसे ही लोग हैं। नचकैये, गवैये और भांडों को अल्पसंख्यक की कयादत देने के साथ ही उनको दूसरे प्रदेशों से देश के सर्वोच्च सदन में भेजा जा रहा है। कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमिटी के सदस्य कभी स्क्रीनिंग में पेश नहीं हुए।

वे प्रदेशों में जाकर टिकटों का फैसला करते हैं। नतीजा टिकटों का कारोबार सबूतों के साथ बाहर आ जाता है।

कई प्रदेश सहित वर्तमान में स्क्रीनिंग कमिटी के चेयरमैन अजय माकन 1993 में अपनी बहन अवंतिका की सिफारिश पर सूची जारी होने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की सलाह पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नरसिम्हा राव ने कोटनाला के जरिए बी-फार्म दे दिया था।

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कांग्रेस की आधिकारिक सूची में राजौरी गार्डन से विधानसभा के लिए कमल मक्कड़ का नाम था। अल्पसंख्यकों के सामने आंसू बहाकर वोट लेने वाले पप्पू यादव लालू के बूते रंगदार और अब राष्ट्रीय कलाकार कांग्रेस के सिपाहसलार हैं। प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने परोक्ष रूप से इन पर आरोप लगाया है।

इनकी आडियो क्लिप दिल्ली से लेकर बिहार में गूंज रही है। न तो राजेश राम से पूछताछ हुई, न ही पप्पू यादव इसे नकार रहे हैं। बिहार में समन्वय और राजनीतिक रणनीति बनाने के लिए जिम्मेदार अविनाश पांडे अपने वार्ड में आज तक कार्पोरेटर जीता नहीं पाए।

छात्र राजनीति से ही पांडे अपने उस्ताद सुबोध कुमार की सरपस्ती में किस तरह की रणनीति बनाते हैं जो आने वाले नतीजों से ही तय होगा।

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