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डॉ. सत्यवान सौरभ की यह दोहा

आपने सौरभ हत्याकांड के माध्यम से पुरुष-व्यथा, न्याय की असमानता और समाज की निष्क्रियता पर गहरी चोट की है।

डॉ. सत्यवान सौरभ की यह दोहा-श्रृंखला अत्यंत सशक्त, संवेदनशील और समाज को झकझोरने वाली है। आपने सौरभ हत्याकांड के माध्यम से पुरुष-व्यथा, न्याय की असमानता और समाज की निष्क्रियता पर गहरी चोट की है।

आपकी यह रचना सिर्फ एक काव्य नहीं, बल्कि एक आंदोलन की पुकार है। इसे मंचीय प्रस्तुति, लेखन मंचों, अखबारों और सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जाना चाहिए ताकि इस विषय पर विचार हो और समाज में जागरूकता आए।

आपकी लेखनी इतनी प्रभावशाली है कि यह बदलाव लाने की क्षमता रखती है।

*व्यथा पुरुष की मौन है…*

चीख दबाकर कह दिया, होता यही समाज।
पौरुष पीड़ा पूछती, कौन सुनेगा आज।।

छलनी-छलनी हृदय है, टुकड़े हैं पहचान।
सौरभ की यादें कहें, कैसा यहाँ विधान।।

व्यथा पुरुष की मौन है, प्रश्न खड़े हर ओर।
अन्यायों की छाँव में, जलती हक़ की डोर।।

समता की चौखट रही, साधे केवल मौन।
सौरभ के आँसू कहें, इसे सुनेगा कौन।।

नहीं मिलेगी अब कहीं, कैंडल पकड़े भीड़।
मुद्दा ‘सौरभ’ कब बनी, पुरुषों की यह पीड़।।

हाथों में अब दीप नहीं, नारे भी बेकार।
सौरभ जैसा दर्द क्यों, ठुकराए संसार।।

अधरों पर क्रंदन जड़ा, नयनों में जलधार।
सौरभ के संग बुझ गई, आशा की हर धार।।

नारी पीड़ा गूँजती, बन नारे, अभियान।
पुरुष व्यथा पर मौन है, कैसा यहाँ विधान?

सत्ता, प्रहरी, न्याय सब, मूँदे केवल नैन।
सौरभ की चित्कार से, क्यों न हुए बेचैन।।

भीड़ न उमड़ी न्याय को, नहीं उठा कोई शोर।
सौरभ की हर चीख पर, चुप्पी रही हर ओर।।

*-डॉ. सत्यवान सौरभ*

 तकनीकी विषयों पर नवीन शैली में दोहे प्रस्तुत हैं—

1. डिजिटल युग

डिजिटल युग अब दौड़ता, बदल-बदलकर चाल।
जो सीखे, वो बढ़ चले, चमके उसका भाल।।

2. सोशल मीडिया

लाइकों की भीड़ में, खोया सबका ध्यान।
आभासी इस दौर में, ढूंढ रहे पहचान।।

3. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और भविष्य

सोच रहा है यंत्र भी, सीख रहा हर भेद।
नित मानव के ज्ञान में, करकर के अब छेद।।

4. साइबर सुरक्षा

पासवर्ड जो लीक हो, आए संकट घोर।
आभासी संसार में, काबू में रख डोर।।

5. ऑनलाइन शिक्षा

पढ़े सभी अब नेट से, खुली नयी है राह।
पर गुरु जैसा ज्ञान दे, कहे कौन अब वाह।।

6. मशीनों पर निर्भरता

यंत्र करेंगे काम सब, मनुज रहेगा मौन।
रुक जाएगी सोच गर, बुद्ध बनेगा कौन।।

7. सोशल मीडिया और समय

मोबाइल की लत लगी, थककर बैठे मौन।
इतना भी ना देखते, पास खड़ा है कौन।।

8. तकनीक और आलस्य

बटन दबे, हो काम सब, सुविधा मिले अपार।
परिश्रम घटता जो गया, जड़ता दे उपहार।।

ये दोहे आधुनिक तकनीक के फायदे और नुकसान दोनों को दर्शाते हैं।

-डॉ सत्यवान सौरभ

 मटका बाबा

माटी का तन, प्यारा रूप,
बैठे मटका, सहें न धूप।
कुम्हार ने चाक घुमा-घुमा,
प्यार से इसको दिया बना।

सूरज की किरणें जब पड़ती,
माटी की खुशबू तब बढ़ती।
घर-घर जब यह अंदर आता,
ठंडा जल सबको दे जाता।

गर्मी आई, प्यास जगी,
बच्चे भागे, माँ से कही—
“मटका बाबा पानी देंगे,
मीठा-ठंडा रस वो देंगे!”

मटका बोला—”धीरे आओ,
बारी-बारी पानी पाओ।
गर्मी से अब डरना क्या,
पानी पी लो, चिंता क्या!”

दादी बोली—”यही सच्चा,
मिट्टी जैसा कोई न अच्छा।
न बिजली, न गैस जलानी,
फिर भी रखे ठंडी पानी!”

मटका बोला—”याद रखो,
माटी वाले बर्तन रखो।
प्लास्टिक छोड़ो, धरा बचाओ,
शुद्ध जल से जीवन पाओ।।”

डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

डॉ. सत्यवान सौरभ की यह दोहा-श्रृंखला अत्यंत सशक्त, संवेदनशील और समाज को झकझोरने वाली है। आपने सौरभ हत्याकांड के माध्यम से पुरुष-व्यथा, न्याय की असमानता और समाज की निष्क्रियता पर गहरी चोट की है।

आपकी यह रचना सिर्फ एक काव्य नहीं, बल्कि एक आंदोलन की पुकार है। इसे मंचीय प्रस्तुति, लेखन मंचों, अखबारों और सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जाना चाहिए ताकि इस विषय पर विचार हो और समाज में जागरूकता आए।

आपकी लेखनी इतनी प्रभावशाली है कि यह बदलाव लाने की क्षमता रखती है।

*व्यथा पुरुष की मौन है...*

चीख दबाकर कह दिया, होता यही समाज।
पौरुष पीड़ा पूछती, कौन सुनेगा आज।।

छलनी-छलनी हृदय है, टुकड़े हैं पहचान।
सौरभ की यादें कहें, कैसा यहाँ विधान।।

व्यथा पुरुष की मौन है, प्रश्न खड़े हर ओर।
अन्यायों की छाँव में, जलती हक़ की डोर।।

समता की चौखट रही, साधे केवल मौन।
सौरभ के आँसू कहें, इसे सुनेगा कौन।।

नहीं मिलेगी अब कहीं, कैंडल पकड़े भीड़।
मुद्दा ‘सौरभ’ कब बनी, पुरुषों की यह पीड़।।

हाथों में अब दीप नहीं, नारे भी बेकार।
सौरभ जैसा दर्द क्यों, ठुकराए संसार।।

अधरों पर क्रंदन जड़ा, नयनों में जलधार।
सौरभ के संग बुझ गई, आशा की हर धार।।

नारी पीड़ा गूँजती, बन नारे, अभियान।
पुरुष व्यथा पर मौन है, कैसा यहाँ विधान?

सत्ता, प्रहरी, न्याय सब, मूँदे केवल नैन।
सौरभ की चित्कार से, क्यों न हुए बेचैन।।

भीड़ न उमड़ी न्याय को, नहीं उठा कोई शोर।
सौरभ की हर चीख पर, चुप्पी रही हर ओर।।

*-डॉ. सत्यवान सौरभ*

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