
AI-Desk News
कारण पुरानी ही कहानी है। सक्षम सफल वर्ग और असफल कमजोर वर्ग में हर तरह से भारी अंतर होना है। जनता के मध्य से ही चुने हुए लोग और चयन किये लोगों को जनता के द्वारा ही पाला जा रहा है। फिर भी कुर्सी पर बैठते ही नेता तथा नौकरशाह दोनों ही जनसेवा या जनहित से विमुख जनता पर शासन, नियंत्रण और अधिकार की सोच में काम करते है।
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क्योंकि इनके मन मतिष्क में कहीं ना कहीं कुर्सी की ताकत से तानााशाही तौर तरीका आ ही जाता है। सामान्य जनता के द्वारा भेजे गये सरकार के अंदर बैठे लोागों के भेजे में जनता से ही प्रतिद्वंदिता पैदा हो चुकी है। अपनी असफलता, नालायकी और अक्षमता को श्रेष्ठता में प्रसारित करने के लिए पूर्ण नियंत्रण की योजना साथ ही चलते है। पता नहीं क्यों?
चुनाव से चयन तरीके में बटन हो या बैलट हो, बहुयात में प्रत्याशी के दिल में जनता की पंसद से बहुमत की स्वीकार्यता पर जीत की जगह से अधिक किसी शार्ट कट में जीत मिलने की सोच हरदम बनी रही है। कटु सत्य है कि किसी दौर के इतिहास में बाहुबली की मदद से बैलट के काला अध्याय लिखा जा चुका है। अब उस दोर की गुजरी यादों में कभी कभी लगता है कि इसी इतिहास को दोहराते हुए कुशाग्र कम्प्यूटर इंजीनियर के द्वारा बटन का नया पन्ना चुनाव के इतिहास में काले पन्नों में फिर जगह बना रहा है।
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इस दिशा में संदेह उपजने की ठोस वजह है।
जबसे कम्प्यूटर के उपयोग से काम आरंभ हुए है प्रशासनिक आवेदनों में लचीलापन नहीं है। जनता के रोजमर्रा के काम नहीं हो पाने अथवा काम के लिए नियमानुसार आवेदनों में याकि प्रशासन की शिकायतें सभी मामले में जन असंतोष व्याप्त है। हर क्षेत्र में कम्प्यूटर को दोष देते हुए अधिकारी और कर्मी वर्ग जनता के कामों को नहीं कर पाने को आज तक नकार रहे है।
फर्जी नागरिकता देने वाले और मतदाता सूची में अवैध नागरिकों के नाम जोड़ने वाले सरकारी अधिकारी ही होते है। जागरूक जनता जब स्वतंत्र सोच से मताधिकार का उपयोग करने लगी है तो वो समस्या लगने लगी है।
सामान्य इंसान महसूस कर रहा है कि तकनीक के जाल में वो जकड़ता जा रहा है। यदि उसके भाव को शब्द दें तो वह तो तकनीक के कारण ब्लेकमेलिंग का शिकार बन रहा है। भले की कम्प्यूटर की दुनिया राजीव गांधी के कारण समय से हिन्दुस्तान में लगभग चालीस साल पहले आयी परन्तु आज इसने एक नये शोषक वर्ग को जन्मा दिया है। जानकारी का दावा बेब पेज पर कहा जाता है और सीधे सवाल जवाब पर जानकारी उपल्ब्ध नहीं का टालु रवैया अपनाया जाता है। हरदम ही इसको लेकर प्रश्न होते है कि आखिर इच्छानुसार काम नहीं ही होता है।
यही कारण है भी कि ईवीएम के लिए संदेह हो रहा है। मतदान की वीवीपीटी और रिकार्ड रूम की सच्चाई को कोई सीसीटीवी सीधे प्रसारण पर उपलब्ध नहीं होती मगर मतदाता के मत का संरक्षक बने आयोग को मन में ही जनता के कठघरे के पाया जा रहा है। व्यवस्था की कमियों और खामियों का कष्टकारी परिणाम जनता को ही जीवन भर सहन करना पड़ता है। न्यायपालिका से समय पर न्याय नहीं हो पाता और पत्रकारों से जनता नाउम्मीद हो चुकी है। वैसे भी पुलिस की तरह ही मीडिया भी जनता का रहा नहीं और कानून से पहले पदस्थ सरकार का मुलाजिम माने जाने लगा है।
चुनाव ईमानदारी से हों केवल दावा नहीं हो। जिस तरह की मुहिम को लेकर पूर्व में दिमागदार लिंगदोह के बाद टी.एन.शेषन, के.जी.राव ने बीड़ा उठाया और ऐतिहासिक काम कर दिखाया वो ज्ञानेश कुमार या अब के नौकरशाहों के खून में कहां? चौक की जीवन भारती बिन्डिंग में राजेन्द्र प्रसाद जैसे पीआईबी अफसरों को लेकर अपने समर्थन में मीडिया और पत्रकारों को विज्ञापनों के द्वारा मैनेज करने से सुप्रीम कोर्ट ंके उलट फैसले पर सवाल दब सकता है मगर पानी yuपत के हार का बदल जाने का सच तो नहीं बदल सकता है।

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