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पटना में भीषण हादसा, ट्रक और ऑटो में जोरदार भिड़ंत – 8 लोगों की मौत

हर दिन बिहार की सड़कों पर मौतें होती हैं। न ट्रैफिक का पालन होता है, न सरकारी निगरानी, न ही सख़्त कानून लागू होते हैं। सड़कें जानलेवा जाल बन चुकी हैं। सरकार कब तक आँखें मूँदे बैठेगी?

पटना में भीषण हादसा, 8 लोगों की मौत, ट्रक और ऑटो में जोरदार भिड़ंत 

 

सैय्यद आसिफ़ इमाम काकवी 
 
बिहार की धरती एक बार फिर खून से लाल हो गई। पटना के शाहजहांपुर-दनियावां हिलसा स्टेट हाईवे पर शनिवार सुबह हुआ दर्दनाक हादसा यह सवाल छोड़ गया है कि आखिर हमारे लोगों की ज़िंदगी इतनी सस्ती क्यों है? एक ट्रक और ऑटो की टक्कर ने पूरे मलावा गाँव के कई घर उजाड़ दिए। माँएँ, बेटियाँ, बहुएँ – सब की लाशें सड़क पर बिखरी पड़ी थीं, जिनसे लिपटकर परिजन चीखते-चिल्लाते रहे। किसी का सुहाग छिन गया, किसी की माँ चली गई, तो किसी की ज़िंदगी का सहारा खत्म हो गया। मृतकों के नाम 
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संजू देवी (60 वर्ष), पत्नी राजेंद्र प्रसाद
दीपिका पासवान (35 वर्ष), पत्नी धनंजय पासवान
कुसुम देवी (48 वर्ष), पत्नी चंद्रमौली पांडेय
चंदन कुमार (30 वर्ष), ऑटो चालक
कंचन पांडेय (34 वर्ष), पिता परशुराम पांडेय
बीरेंद्र राउत की पत्नी
शंभू राम की पत्नी
विकास राम की पत्नी 
ऑटो में सवार ये लोग सिर्फ गंगा स्नान के लिए निकले थे, कौन जानता था कि उनका सफर मौत का सफर बन जाएगा। यह कोई पहला हादसा नहीं है। हर दिन बिहार की सड़कों पर मौतें होती हैं। न ट्रैफिक का पालन होता है, न सरकारी निगरानी, न ही सख़्त कानून लागू होते हैं। सड़कें जानलेवा जाल बन चुकी हैं।
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ओवरलोड ट्रक, बिना जांच के चल रही गाड़ियाँ, बिना लाइसेंस के ड्राइविंग—यह सब हमारी जानें रोज़ लील रहे हैं। हादसे के बाद यह सवाल उठना लाज़मी है कि सरकार कब तक आँखें मूँदे बैठेगी? जब हर दिन परिवार उजड़ रहे हैं, जब हर दिन मासूम बच्चों के सिर से माँ-बाप का साया उठ रहा है, तो क्या केवल बयानबाज़ी और मुआवज़ा ही सरकार की जिम्मेदारी रह गई है?
हिलसा विधायक ने सही कहा अगर सीमेंट फैक्ट्री की लापरवाही से हादसे हो रहे हैं, तो सज़ा सिर्फ ड्राइवर को क्यों? क्यों न फैक्ट्री और प्रशासन दोनों को जिम्मेदार ठहराया जाए? यह सिर्फ मलावा गाँव का दर्द नहीं है, यह पूरे बिहार का दर्द है। जब तक सख्त ट्रैफिक नियम, सीसीटीवी निगरानी, लाइसेंस की पुख़्ता जांच, और तेज़ रफ़्तार पर लगाम नहीं लगेगी—तब तक सड़कें हमारे अपनों का क़ब्रिस्तान बनती रहेंगी।
आज हर उस माँ की सिसकियाँ सुनाई दे रही हैं, जिसका बच्चा सड़क पर खून से लथपथ पड़ा रहा। हर उस बच्चे की आँखों में आँसू हैं, जो अपनी माँ की लाश से लिपटा बैठा था। यह हादसा हमें झकझोरता है और सरकार से यह सवाल पूछता है “आख़िर कब तक बिहार की सड़कों पर मौत का ये खेल चलता रहेगा?

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